Madhu Arora

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अनोखी किस्मत

भाग 14
अभी तक आपने पढ़ा, रघुनंदन राधिका और अपने रिश्ते के बारे में कुछ सुन पाता है,और राधिका की आंखों में आंसू नहीं देख पाता । वह अपने मित्र  से  माफी मांग कर तांगे पर बैठते हैं
तांगे पर जा बैठे रधुनंदन के प्रति  राधिका के मन में प्रेम के बीज अंकुर का रूप लेने लगे । प्रेम भी क्यों ना उपजे जो उसके  लिए जमाने से बोल सके ऐसा इंसान उसको मिल गया। उसकी चाहत बढ़ने लगी। उसको समझ आने लगा की रघुनंदन की इतनी बड़ी भी गलती नहीं थी जो उसको माफ ना किया जा सके। राधिका सोचने लगी यह उस दिन सब भावावेश में हो गया होगा

धर्म सिंह का घर गुस्से में छोड़ तो दिया लेकिन रात का समय और इतना लंबा सफर ज्यों का ज्यों  गांव छुटता जा रहा था तो डर भी बढ़ता जा रहा था। सभी डर रहे थे।

 लेकिन एक दूसरे से व्यक्त नहीं कर रहे थे भगवान का शुक्र था उस दिन रात पूरे चांद की रोशनी धरती पर पड़ रही थी लेकिन चाहे जो भी हो रात तो रात होती है।
 
बियावान जंगल मेंउल्लू की आवाज डरा रही थी ,कहीं सियार कीआवाज सुनाई दे जाती था । सुनसान रास्ता और ऐसे में तांगा रोकने का कोई फायदा नहीं था

 ।तभी अचानक झाड़ियों में से कुछ लुटेरे बाहर निकल आए उन्होंने तांगे को चारों ओर से घेर लिया।और रघुनंदन से बोले "जो भी तुम्हारी जेब में रुपया पैसा है सब दे दो!"
 
 रघुनंदन में अंगूठी ,चेन ,और जो रूपए थे वह सब उनको दे दिए तभी एक लुटेरा बोला तांगे में जो जनानी बैठी है। उसने भी जरूर गहने पहने होंगे।
 
 धमकाकर बोले अपने सारे गहने हमें दे दो। नहीं तो हम इसको मार देते हैं। राधिका एकदम तांगे नीचे  कूद आई और बोली।"कृपया करके भाई इन्हें छोड़ दीजिए।"
 
 डाकू बोला "तुमने हमें भाई कहा है बहन बिना गाली के हमसे कोई बात नहीं करता तुम चिंता मत करो हमें तुम्हारा कुछ नहीं चाहिए हम तुम्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और हम में से कोई एक तुम लोगों को तुम्हारे गांव तक छोड़कर आएगा क्योंकि आगे भी और डाकू मिल सकते हैं"
 
 और ऐसा ही हुआ।
 
 नंदू तांगे में गहरी नींद में सो रहा था बच्चा था ना उसको कुछ पता ही नहीं चला।
 
 रात के तीन बजे तक तक सब घर पहुंच गए ।राधिका ने रधुनंदन सिंह से पूछा !"ऐसा भी क्या गुस्सा था की आधी रात को ही शादी का घर छोड़ दिया। आगे पीछे कुछ भी नहीं सोचा"।
  रघुनंदन जी बोले "किसी का दिल जीतना था। ताकि मैं किसी को नंदू की मां कह सकूं"।
  
  और तुम बताओ ना ,"तुम कैसे एकदम से अपनी जान की परवाह ना करते हुए तांगे से कूद आई। रघुनंदन जी ने राधिका को छेड़ते हुए कहा"।
  
  राधिका बोली अभी तक दिल नहीं जीत पाए किसी को मौका मिला है।ताकि मैं भी किसी को नन्दू के बाबा कह सकूं।
  
   तो बनोगी मेरे नन्दू की मां!  करोगी एक बार सबके सामने मुझसे विवाह.........?
   
    रघुनंदन सिंह ने राधिका से पूछा !
    और राधिका शरमा कर रघुनंदन सिंह के गले लग गई ।आज दोनों दिल  एक दूसरे के हो गए और नन्दू को सदा के लिए मां का प्यार मिल गया।दोस्तों अगर आपको हमारी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज
    अपनी सुंदर लाइक और कमेंट दीजिए 🙏🙏💐
    धन्यवाद 

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1 Comments

Nice part 👌

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